Friday, April 4, 2014

बाहरी /लघुकथा

बाहरी /लघुकथा
अटेन्डेन्ट -सर आप तो एकदम बाहरी हो गए।
कैसी  बात कर रहे हो लालू ?
आपके लिए दरवाजा बंद हो गया।
मुझ अदने के लिए तो विभाग का दरवाजा पहले से ही बंद है। तुम कौन से दरवाजे की बात कर रहे हो ?
सामने वाले की ,जिधर से एसी की हवा आ रही थी अ लपलपाती लू में आप तो पक जाओगे कच्ची केरी की तरह।
लालू जिसकी लाठी उसकी भैंस। मिस्टर अफसर को हर अघोषित लाभ और सुविधा का अघोषित अधिकार स्वजातीय बिग बॉस ने दे रखा है। मिस्टर अफसर दोनों हाथो से लूट रहे है। हमारा तो विभाग में कोइ गाड  फादर नहीं है इसलिए हमारी तबाही निश्चित है और हो रही है। हमें तो लाभ की तरफ देखना भी मना है। लालू हम तो पहले से बाहरी है और अब और अधिक हो गए।
लालू -सर आप भी तो अफसर है ?समझ गया।
क्या समझ गया लालू  ?
आप  उच्च जातीय गुट में फिट नहीं बैठते ना इसलिए बदनाम और चौतरफा नुकशान किया जा रहा है। किसी ने सच कहा है अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को देय। सर आपका अब निडर और बाहरी बने रहना ही उचित लगता है।
सलाह के लिए धन्यवाद लालू।
डॉ नन्द लाल भारती
   04
अप्रैल 2014






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