Friday, April 4, 2014

दहकती लू का दिया दर्द/लघुकथा

दहकती लू का दिया दर्द/लघुकथा
नारायण क्या खबर है ,खुश  हो ना ?
स जी सब बढ़िया है।  रही खुश नाराज होने की बात तो ,मेरे नाराज और खुश होने से क्या फर्क पड़ता है. जैसे पहे जैसे ही जी रहा हूँ दर्द का बोझ छाती पर लादे त्या साहेब।
कितने अफसर आये -गए कई तो साधारण ग्रेजुएट थे बिग बॉस हो गए तुम तो बहुत अधिक पढ़े लिखे योग्य हो। तुम्हारे साथ अत्याचार क्यों। …?
नारायण साहेब छोटी कौम का होने  का दंड मिल रहा है। यह विभाग हमारे जैसो के लिए नहीं बना है। इस विभाग में ऊपर जाने के लिए पहली योग्यता ऊँची जाति फिर ऊँची पहुँच।
सत्या -वाह रे शाइनिंग इंडिया कब तक शोषितो की तरक्की  कागजी घोडा बनी रहेगी।
नारायण देख रहे हैं शाइनिंग इंडिया की  स्वर्णिम आभा में दहकती लू का दिया दर्द भोग रहा हूँ। क्या यही तरक्की है....... …?
डॉ नन्द लाल भारती    04 अप्रैल 2014

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