Wednesday, February 11, 2015

दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा/लघुकथा

दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा/लघुकथा 
लो तरक्की आ गयी दासवंत  खैनी थूकते हुए बोला। 
कैसी तरक्की कर्मवन्त हुक्का दास्वन्त को थमाते  हुए बोला। 
क्या ये तरक्की कम  है ,अछूत दलितो  ,दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा कहा  जा रहे है। 
सब भ्रमजाल में फंसाकर  गुलाम बनाये रखने की साजिश है दासवंत। 
सिकुड़ती हुई दुनिया में हो सकता है दलितों के दिन भी अच्छे आ  जाये. 
सदियों से शोषितो  के साथ धोखा है। सोचो जिन लोगो ने रूढ़िवादी जातिवादी धर्म  लिए   हांडी  गले में   झाड़ू कमर में  बांधने को विवश किया ,आदमी को जानवर से बदतर बना   दिया।  उन्ही के वंशज दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा कह रहे है। क्या कभी रोटी बेटी  की बात किये  है या कोई धार्मिक  सामजिक स्तर पर उदहारण पेश  किये ।   नहीं  दासवंत  नहीं । यह दहन-दमन की कोई नई साजिश है । 
क्या रहे हो कर्मवन्त ?
सच कह रहा हूँ। 
क्या सच कह रहे हो ?
जातिवादी -नफरतवादी रूढ़िवादी  धर्म के  डूबते जहाज को बचने के  लिए अब धर्म के ठेकेदारो को    दलितक्षत्रिय ,धर्मयोध्दाओ   अर्थात अछूतों /दलितों का  आत्म बलिदान  चाहिए। डॉ नन्द लाल भारती 11  .02 .2015    

दूषित आँख /लघुकथा

दूषित आँख /लघुकथा 
हवलदार  आवेदन के साथ लगी नवयौवना के  फोटो को दूषित  आँखों से निहारते हुए बोला हेडसाहेब गुमशुदा का एक नया केस आ गया क्या ....... ?
आ तो गया है। 
जनाब जांच कहा तक पहुंची ....... ?
जांच क्या ....... ?
क्यों नहीं .... ?
क्या जांच। जाड़े  का मौसम शबाब पर है ,उतरते ही वापस आ जायेगी। 
देश की  रक्षा और  समाज की सुरक्षा की कसमे खाकर  दौलत और  अस्मिता पर अश्लील नजरे रखने वाले, देश और समाजद्रोहियो की बात सुनकर सच नारायण का कलेजा मुंह में आ गया वह छाती पर हाथ रखकर थाने से  बाहर चला गया। पुलिस वाले दूषित आँखों से निहारते रह गए। 
 डॉ नन्द लाल भारती
 23 दिसम्बर 2014 

बेटी के बाप दर्द /लघुकथा

बेटी के बाप दर्द /लघुकथा 
गौरव तुम भी ब्याह की डोर में बंध गए। वैवाहिक जीवन मुबारक हो यार. 
धन्यवाद दीपचंदभाई। 
ब्याह की ख़ुशी तुम्हारे चहरे पर झलक नहीं रही है। ब्याह से खुश हो ना भाई। दहेज़ में कमी रह गयी क्या ? इंजीनियर पत्नी मिली है। तुम्हारा कुल सुधर जाएगा। 
रंजीत -गौरव बेटी के बाप को निथार लिया होगा,छोड़ा नहीं होगा। 
गौरव-पापा ने लिया है मैंने नहीं। 
कितना ..... ?
दस लाख शायद- गौरव। 
समझ में आया। 
क्या दीपचंद … ?
काश तुम्हारे पापा बेटी के बाप का दर्द समझ पाते।दहेज़ का विरोध करने वाला बातो का जादूगर बिक गया । बालिका भ्रूण हत्या के दोषी तेरे पापा सौदागर है क्या ?
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015

शर्म करो /लघुकथा

शर्म करो /लघुकथा 
शादी मुबारक हो गुमान। 
धन्यवाद बड़े भाई। 
सब ठीक ठाक सम्पन्न हो गया। 
जी आपकी कृपा से। 
क्या मिला कोई नहीं रहे हो। 
हमे तो कुछ नहीं मिला। 
क्या बात रहे हो। 
सच कह रहा हूँ। 
दुल्हन नहीं आयी। 
आयी ना बड़े भाई.
दुल्हन ही दहेज़ है। एक बाप अपने कुल की इज्जत तुम्हे दिया। इसके बाद भी सामर्थ्य अनुसार दान दहेज़ भी दिया होगा। तुम कह रहे हो कुछ नहीं। कुछ तो शर्म करो गुमान।
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015

ओम की मौत /लघुकथा

ओम की मौत /लघुकथा 
ओम नाम था उसका। हां नशे की तनिक लत थी पर गुस्ताख़ बंदा ना था। परायी नारी में उसे अपनी माँ -बहन नज़र आती थी। इसी नज़र की वजह से पड़ोस me रहने वाली युवा कुंवारी कन्याओ के अनैतिकता की और बढ़ाते कदम को रोंकने की गुस्ताखी करवा दी ।इन कुंवारी कन्याओ ने नारी होने का खूब फायदा uthaya। ओम के खिलाफ अनेक धाराओ में पुलिस केस दर्ज़ करवा दिया। ओम और उसका इज्जतदार परिवार खौफ में रहने लगा। इसी खौफ ने एक दिन नन्हे बच्चो के युवा बाप ओम की जान ले ली। ओम की मौत से उठे सवाल नारी अस्मिता को कठघरे में खडे कर रहे थे और साथ ही सभ्य समाज की छाती में ठोंक रहे थे कीलें भी। डॉ नन्द लाल भारती 20.01.2015

एफ.आई.आर./लघुकथा

एफ.आई.आर./लघुकथा 
मुंशीजी रिपोर्ट लिख लिया …… ?
कौन सी रिपोर्ट हेडसाहेब …… ?
चोरी वाली और कौन सी। 
बिना माल लिए। सब छाप रहे है। हम फोकटी तो नहीं। 
लिखो तो सही। 
देखो हेडसाहेब बिना माल के काम नहीं। 
थाने में पुलिस का आपसी मोलभाव सुनकर कृपणारायण बोला कैसे न्याय मिलेगा धनबीर…… ?
आओ चले धनबीर बोला। 
कहाँ …… ?
कचहरी।
कचहरी क्यों …… ?
मुकदमा दर्ज़ करवाने।
बिना एफ.आई.आर.लिखवाये।
दबे कान आवाज़ सुन रहे हो ,एफ.आई.आर.लिखवाने के माल लगते है ।
ठीक कह रहे हो, थाने में सुनवाई नहीं हो रही है कचहरी में हो सकती है। थाने का सबूत भी तो मोबाइल में हो गया है।
डॉ नन्द लाल भारती
23 दिसम्बर 2014

ओम की मौत /लघुकथा

ओम की मौत /लघुकथा 
ओम नाम था उसका। हां नशे की तनिक लत थी पर गुस्ताख़ बंदा ना था। परायी नारी में उसे अपनी माँ -बहन नज़र आती थी। इसी नज़र की वजह से पड़ोस me रहने वाली युवा कुंवारी कन्याओ के अनैतिकता की और बढ़ाते कदम को रोंकने की गुस्ताखी करवा दी ।इन कुंवारी कन्याओ ने नारी होने का खूब फायदा uthaya। ओम के खिलाफ अनेक धाराओ में पुलिस केस दर्ज़ करवा दिया। ओम और उसका इज्जतदार परिवार खौफ में रहने लगा। इसी खौफ ने एक दिन नन्हे बच्चो के युवा बाप ओम की जान ले ली। ओम की मौत से उठे सवाल नारी अस्मिता को कठघरे में खडे कर रहे थे और साथ ही सभ्य समाज की छाती में ठोंक रहे थे कीलें भी। डॉ नन्द लाल भारती 20.01.2015