शर्म करो /लघुकथा
शादी मुबारक हो गुमान।
धन्यवाद बड़े भाई।
सब ठीक ठाक सम्पन्न हो गया।
जी आपकी कृपा से।
क्या मिला कोई नहीं रहे हो।
हमे तो कुछ नहीं मिला।
क्या बात रहे हो।
सच कह रहा हूँ।
दुल्हन नहीं आयी।
आयी ना बड़े भाई.
दुल्हन ही दहेज़ है। एक बाप अपने कुल की इज्जत तुम्हे दिया। इसके बाद भी सामर्थ्य अनुसार दान दहेज़ भी दिया होगा। तुम कह रहे हो कुछ नहीं। कुछ तो शर्म करो गुमान।
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015
शादी मुबारक हो गुमान।
धन्यवाद बड़े भाई।
सब ठीक ठाक सम्पन्न हो गया।
जी आपकी कृपा से।
क्या मिला कोई नहीं रहे हो।
हमे तो कुछ नहीं मिला।
क्या बात रहे हो।
सच कह रहा हूँ।
दुल्हन नहीं आयी।
आयी ना बड़े भाई.
दुल्हन ही दहेज़ है। एक बाप अपने कुल की इज्जत तुम्हे दिया। इसके बाद भी सामर्थ्य अनुसार दान दहेज़ भी दिया होगा। तुम कह रहे हो कुछ नहीं। कुछ तो शर्म करो गुमान।
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015
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