श्रवण और दधीच /लघुकथा
सुबह -सुबह चिंता के बादल,क्या वजह है कमल ?
चिंता के तो है पर अंवारा नहीं गुलाब बाबू |
शक पुख्ता है ।
पुख्ता ही समझिये ।
वजह क्या है ,क्यों चिंतित हो कमल ?
गुलाब बाबू जब खून के रिश्ते स्वार्थ की हदें तोड़ने और बेगानो जैसा व्यवहार करने लगे तो चिंता तो होगी ना ?
क्या खून के रिश्तो में बेगानेपन का जहर ?
हाँ गुलाब बाबू वही अपने खून के रिश्तेदार जो जोंक की तरह अपने लहू पर पल रहे, जिनके सुख-दुःख पर मेहनत की कमाई स्वाहा हो रही ।
वाकई चिंता की वजह पुख्ता हो गयी है ।
अब तो टूटने लगा हूँ गुलाब बाबू ।
हिम्मत ना हारो कमल,तुम कितना त्याग कर रहे हो सभी जानते है। आदमी नहीं भी माने तो क्या भगवान पर भरोसा रखो। उसी को साक्षी मानकर नैतिक दायित्वों का निर्वहन करते रहो बस. चिंता -फिक्र को मारो गोली ।
कर तो वही रहा हूँ पर कुफ़्त और दर्द तो होता ही है भले ही मर्द हूँ क्योंकि नशे की जिद के आदी बाप के लिए श्रवण और स्वार्थी भाई के लिए दधीच नहीं बन सका गुलाब बाबू।
बनना भी नहीं कमल ।
डॉ नन्द लाल भारती
18.06. 2015
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