ये कैसा भैयप्पन/लघुकथा
कुटुंब की तरक्की के लिए,सगे सम्बन्धियों से दूर शहर का वनवास झेल रहा बड़ा भाई काफी हद तक अपने मकसद में सफल हो चुका था.गाँव में रह रहे छोटे भाई के बेटे को नन्ही सी उम्र से अपने साथ रखकर पढ़ा लिखाकर अफसर बना लिया था,बाकि बच्चो का भी पूरा ख्याल रखता ,छोटे भाई उसके परिवार के हर दुःख -सुख को अपना दुःख सुख समझता था ,बीमा होने पर सहारा लेकर इलाज करवाता था,छोटे भाई के इलाज पर लाखो खर्च कर चूका था जबकि गाँव में छोटा भाई भी स्वरोजगार से था। शहर का वनवास झेल रहा बड़ा भाई अपनी बेटी के ब्याह को लेकर चिंतित था,काफी भाग दौड़ के बाद सुदूर बेटी की शादी तय हो गयी। बड़े भाई ने खबर छोटे भाई और निकट के रिश्तेदारो को शादी में शामिल होने का अनुरोध सविनय किया था। सप्ताह भर बाद बड़े भाई ने बेटी के ब्याह में शामिल होने के लिए रेल टिकट की जानकारी लेना चाहा तो छोटे भाई ने कहा हमने अपना और अपने परिवार का टिकट करवा लिया है पर.…?
बड़ा भाई पर का क्या मतलब भाई....... ?
रेल टिकट पर छः हजार खर्च हो गए है,छोटा भाई तगादे के अंदाज में बोला ।
बेटी के ब्याह में आने के लिए खर्च भी देना है , मैं जिस छोटे भाई के मोह में कुए का मेढक बना हुआ था उस भाई का ये कैसा भैयप्पन। बड़े भाई के हाथ से फ़ोन छूट गया,बेचारा बड़ा भाई ठगा सा छाती पर हाथ रखे वही बैठ गया।
डॉ नन्द लाल भारती
29.04.2015
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