Wednesday, June 24, 2015

श्रद्धांजलि /लघुकथा

श्रद्धांजलि /लघुकथा 
दफ्तर तुम्हारे नाम है क्या ?
ऐसी कौन सी गुस्ताखी हो गयी कि इतनी बेरुखी वह भी फ़ोन पर ?
भगवान के फ्यूनरल में नहीं गए ?
घर से तो जाने के लिए आया था । 
गए क्यों नहीं ?
दफ्तर पहुंचा तो पता चला की साहब लोग निकल गए ।
बात नहीं हुई थी ।
बिग बॉस से साढ़े नौ बजे बात हुई थी ,नहाने जाने का कहकर फ़ोन बंद कर दिए थे ।
आई सी ।
व्हाट………
उच्च अधिकारियो के बीच तुम कैसे …………?तुम तो दफ्तर से ही श्रद्धांजलि दे दो |
मैं सुबह से ही भगवान की आत्मा की शांति और उसके परिवार के सुखद जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ ।
तुम्हारी श्रद्धांजलि जरूर कबूल होगी । जानते हो…………?
क्या ?
उच्च अधिकारियो की बातो पर विश्वास मत किया करो ।
क्यों …………?
हंसिया अपनी तरफ खींचता है मिस्टर नगीना ।
डॉ नन्द लाल भारती 24 .06 . 2015

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