Thursday, June 18, 2015

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा 
क्या राज है, मौन खिलखिलाहट का नरेंद्र ?
हाशिये के आदमी की नसीब में कहाँ खिलखिलाहट सतेंद्र बाबू । 
चेहरा मौन खिलखिलाहट की चुगली कर रहा है,कोई ख़ास वजह तो है । 
कोई ख़ास नहीं बस एक मुर्दाखोर की याद आ गयी । 
मुर्दाखोर क्या बक रहे हो नरेंद्र ?
सच सतेंद्र बाबू ।
कौन है वो अमानुष ?
एक था सामंतवादी,शोषतो की नसीब का खूनी विभागीय तुगलक विजय प्रताप । जिसके अघोषित फरमान से हम और हमारे जैसो को तरक्की से दूर बहुत दूर फेंक दिया गया और तो और हम और हमारे के लिए विभाग का दरवजा बंद कर दिया गया सिर्फ जातीय वैमनस्यता के कारण ।
ये तो ख़ुशी की नहीं शर्म की बात है नरेंद्र।
मुर्दाखोरो को कहाँ शर्म आती है सतेंद्र बाबू ? दैवीय चमत्कार ही मानो एक दिन ऐसे मुर्दाखोरो का गुमान टूटता जरूर है ।
अमानुष विजय प्रताप का गुमान कैसे टूटा ?
उसकी औलादों ने मुंह पर जूते पर जूते दे मारा सतेंद्र बाबू ।
क्या .... ?
सच औलादों ने इतने गिन-गिन कर जूते मारे कि सामंतवादी,शोषितों की नसीब का खूनी, तुगलक विजय प्रताप मुंह दिखाने लायक नहीं बचा ।
ऐसा औलादो ने क्या कर दिया नरेंद्र ?
भाग कर अन्तरजातीय ब्याह कर लिया |
डॉ नन्द लाल भारती
18.06. 2015

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