Thursday, December 2, 2010

putra moh

पुत्र मोह   

बहू-बेटो ने दुखीबबा का जीवन नरक कर दिया था . दी दिनों से मरन्शैया पर पड़े हुए थे . दुखिबबा कराहते हुए बड़े बेटे गोपाल से विनती भरे स्वर में बोले बेटा जमींदार जगदीश बाबू को बुला देता. मुलाकात की बड़ी इच्छा है .
गोपाल -डपट दिया .
दुखिबबा गाँव के एक लडके जीतेन्द्र को भेजकर जमीदार जगदीश बाबूओ को बुलवाए. दुखिबबा ने जगदीश को पास बैठाने का इशारा किया और उखड़ती सांस में बोले बाबू मै तो जा रहा हूँ. मेरे बच्चो पर दया-दृष्टि बनाये रखना और दुखिबबा की सांस सदा के लिए थम गयी.
गोपाल अवाक था पिता के अंतिम क्षण के पुत्र मोह को देखकर .
नन्द लाल भारती

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