नासूर .....
दुखी हो गए ?
सुखी कब था ज्वालामुखी की मांद पर ?
सच, हाशिये का आदमी पक्षपात का शिकार और मुश्किलों का पर्याय हो गया है. ना जाने इस नासूर का इलाज कब संभव होगा.
इलाज तो संभव है पर जिम्मेदार होने देना नहीं चाहते. भाई-भतीजावाद ,भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले अंधे-बहरे अपनो को रेवड़ी बाँट रहे है. योग्य तिरस्कृत है. पर कतरे जा रहे है .
काश देश और आम आदमी के विकास में बाधा बना नासूर ख़त्म हो जाता . तरक्की से दूर फेंका आदमी रफ़्तार पकड़ लेता .
संभव तो है जिम्मेदार लोग नैतिक ईमानदार बने तब ना. घात का ज्वालामुखी तो वही से फूटता है ...
नन्दलाल भारती..२२.१२.२०१०
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