आस्था ..
साहब पुष्पगुच्छ स्वीकार कीजिये .
किस ख़ुशी में रोहन .
आपके जन्मदिन की ख़ुशी में .
बेटा शुभकामना के शब्द बोल देता . तुम्हारे अंतर्मन की शुभकामना मुझे मिल जाती. पैसा खर्च करने की क्या जरुरत थी . दैनिक वेतनभोगी हो,तंगी से गुजर रहे हो...
जनता हूँ गरीब हूँ पर आस्था से नहीं..स्वीकार कीजिये साहब ..
तुम्हरी आस्था के सामने नतमस्तक हूँ रोहन ,
साहब ये पुष्पगुच्छ स्वीकार कीजिए .
मुझमे अस्वीकार करने का सामर्थ्य कहा ....गले से लग जा बेटा रोहन.......नन्दलाल भारती
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