Wednesday, December 1, 2010

vidroh

विद्रोह .

बगावती -काकी सास दमयंती के सामने थाली पटकते हुए बोली भैंस का चारा-पानी मै कर रही हूँ और दूध पुष्पा पी रही है. अम्मा ये बेगानापन क्यों .
दमयंती-बीटिया तू नहीं जानती क्या पुष्पा के पेट में जानलेवा दर्द हो रहा है. डाक्टर ने पंद्रह दिन तक खाना देने को मन किया है. बेटी तू ही बता कैसे रहेगी जिंदा बिना खाए-पीये. कुछ तो चाहिए ना ....
बगावती ..सगी पतोहू को दूध पिला रही हो  मुझे सूखी रोटी ...
दमयंती..बेटी तेरे पति को अपना दूध पिलाकर पला तो क्या तुझे सूखी रोटी दे सकती हूँ. सब तो तेरे हाथ में है ना.  कभी तुमको रोका है क्या. क्यों विद्रोह पर उतर रहो हो.
बगावती विद्रोह के बिना कैसे हक़ मिलेगा इस घर में..
दमयंती.. कैसा हक़ चाहती हो बीटिया..
बगावती.. आधे का ..
दमयंती-- घर में दीवार...
बगावती- हां..
इतना सुनते ही दमयंती गिर पड़ी धडाम से बेसुध... नन्दलाल भारती

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