दौलत...
मिठाई खाओ हरिबाबू ...
किस ख़ुशी में रमाकांत बाबू .
एक और नया मकान का सौदा कर लिया .
कितने घर बना लिए . क्या करोगे इतने मकान और अथाह दौलत जोड़कर .
जितनी जुड़ जाए कम है आजकल के जमाने में हरिबाबू.
कहा ले जाओगे . अरे ले जा भी तो नहीं सकते .
क्या करू हरिबाबू.
दान-ज्ञान-सत्कर्म .. ऐसी दौलत जन-जन्मान्तर साथ नहीं छोड़ती रमाकांत बाबू.
नन्दलाल भारती १७.०२.2011
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