तारीफ़ ..
३२ साल के बाद्शिश्य को पाकर स्कूल के प्रिंसिपल साहेब शिक्षकगन और स्टाफ जैसे फुले नहीं समां रहे थे.शिष्य के कार्यो की तारीफों के पुल बंधे गए. प्रिंसिपल साहब ने नाश्ते का प्रबंध करवाया, गुरुजनों के साथ शिष्य ने हंशी-ख़ुशी नाश्ता किया. परिचर परम्परागत गिलास में पानी भरने लगा तो गुरुजन ने इशारा किया वह गिलास वही रखकर डिस्पोजल गिलास में तुरंत-फुरंत में पानी लाया.शिष्य प्रिंसिपल साहब,शिक्षको और अन्य वारिष्ट्जनो का चरण -स्पर्श कर ज्योहि विदा लिया उसके में विचार कौंध गया क्या सचमुच बूढी व्यवस्था गुरु और शिष्य के बीच खाई खोदने में सक्षम है. अंतर्मन ने कहा नहीं... ये तो बस जातीय श्रेष्ठता का स्वांग है पर छोटी जाति का बड़ी-बड़ी उपलब्धिया हाशिल करने वाला शिष्य असमंजस में था की जातीय श्रेष्ठता के लिबास में ३२ साल बाद स्कूल में हुई तारीफ को क्या नाम दे. .. अपमान का या सम्मान का ...
नन्दलाल भारती ..१७.०४.२०११
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