Thursday, October 14, 2010

koyala

कोयला ..
रेखा-लाली क्यों दुखी रहती हो. गोंड में सुन्दर सी बेटी है, हंस बोलकर रहा कर. माँ-बाप की या में कब तक तपती  रहोगी. मायका एक दिन छूट  ही जाता है हर लड़की का..
लाली- आंटी ये बात नहीं है.  
रेखा-क्या बात है ?  
लाली-बाप के जाती के अभिमान ने मुझे तबाह कर दिया. पश्चाताप की आग में जल रही हूँ.चैन की रोटी को तरस रही हूँ आंटी इस बड़े  घर में .
रेखा-क्या कह रही हो लाली ?
आंटी-आंटी बिलकुल सही कह रही हूँ. मेरे दीदी छोटी जाती के लडके से ब्याह कर दुनिया का सुख भोग रही है और मै नरक, जातिपाति ती के ठीहे पर मार्डन युग के पढ़े -लिखे लडके लड़कियों  भविष्य का क़त्ल कहा तक उचित है ? काश मै अपने भविष्य का फैसला खुद ली होती  दीदी की तरह तो अपने पाँव पर कड़ी होती. आंटी अंतरजातीय ब्याह की इजाजत होनी चाहिए आज के आधुनिक युग के लडके -लड़की को एक दुसरे के योग्य और स्वधर्मी होना चाहिए. हां विवाह क़ानूनी तौर पर हो और समाज  को मान्य हो. लाली की छटपटाहट   और पश्चाताप को देखकर रेखा को ऐसे लगा जैसे उसके गले में किसी ने गरम कोयला ड़ाल दिया  हो...
नन्दलाल भारती

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