Saturday, September 18, 2010

BOOKH

भूख ..
देवकरन नशे  की हालत में ठुसते जा रहे थे जो कुछ खाना था ,यान्ति परस चुकी थी . देवकरन  खाने के बाद थाली चाटने लगा तो दयावंती से नहीं रहा गया वह बोली और रोटी बना दू क्या.....? 
देवकरन -नहीं रे तू ये बर्तन रख और सो जा.......... लड़खड़ाते हुए देवकरन  बोला और चारोखाना चित हो गया. कुछ देर के बाद कराहने लगा . बेचारी दयावंती हाथ पाँव दबाने लगी. हाथ पाँव दबाते ही खरार्ते मरने लगा.   जब दयावंती  के हाथ थम जाते  तो वह कराहने लगता , बेचारी रात भर देवकरन की सेवासुश्र्खा में लगी  रही. भोर हुई  नशा तनिक उतारी तो वह  दयावंती को उंघती देखकर  बोला  राजू की माँ रोटी खा ली .
दयावंती-तुमने खा लिया ना-----
देवकरन -मैंने तो खा लिया ..
दयान्ति-समझो मैंने भी खा लिया ....
देवकरन - मतलब--------
दयावंती - औरत हूँ ना बच गया तो खा लिया नहीं बचा तो नहीं खायी . औरत को भूख नहीं लगती ना...
इतना सुनते ही देवकरन की सारी नशा उतर गयी ..............नन्दलाल भारती....१८.०९.२०१० 


 

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