Tuesday, March 29, 2011

kab aur kaise

कब और कैसे ?
डाक्टर क्या हुआ ? 
पीठ में बहुत दर्द है .
कब से ?
चालीस साल पुरानी है  . रह रह कर उभर जाती है .
पेड़ से गिर गए थे क्या ?
नहीं... आंधी में गिरी केरी उठाने की सजा मिली थी .
क्या केरी की सजा  इतनी बड़ी . किस अमानुष ने दी थी .
गाँव के जमीदार के  बेटे रविन्द्रनाथ ने . दूसरे और भी कई बच्चे थे सब तो भाग गए मै केरी लिए खड़ा रह गया.
साहेब मै इस जीवन में तो रविन्द्रनाथ के लात-घुसे को नहीं भूल एकता. पीठ पर तो ऐसा घुसा मारा था कि मै अचेत हो गया था . 
बाप रे ऐसे अमानुष  भी है .
हां साहेब गाँव में आज भी दबंगों की तूती बोलती है. दमन के शिकार आज भी शोषित ,गरीब,मजदूर हो रहे है. 
बीमारी का इलाज तो है मेरे पास पर अमानुषो का इलाज कब और कैसे होगा इस आज़ाद देश में ..
नन्दलाल भारती २९.०३.2011

Monday, March 28, 2011

TARGET

तारगेट.. 
नंदा  आजकल तुम तारगेट बने हो .
कैसा तारगेट ना तो पास दौलत का ढेर और ना  ही रुतबेदार ओहदा ?
कल की दुर्घटना भूल गए .आज की तो याद होगी ?
कल की कौन  और आज की कैसी ?
कल की रेगुलर कर्मचारी   ना होता तो झगडा करता . आज की बात प्रेमचंद जैसी कपडे अंग्रेजो जैसा .
खून चूसने वालो को हाशिये के आदमी की  तनिक तरक्की कैसे बर्दाश्त होगी . वह तो कमजोर आदमी की आँख में आंसू देखकर खुश होता है .
हां खून चूसने वाला रौदने की फ़िराक में रहता है तानाशाह की तरह . 
ठीक कह रहे हो हंस बाबू  तभी हाशिये का आदमी तारगेट बना रहता है तानाशाहों का .यही कारण है जिसकी वजह से कमजोर / हाशिये का आदमी तरक्की से दूर है .. नन्दलाल भारती.. २८.०३.२०११



Thursday, March 24, 2011

CHHOTA HONE KA DARD

छोटा  होने  का   दर्द ..  

बड़े   बाबू  छुट्टी  तो  घोषित  नहीं  हो  गयी  ?
कैसी  छुट्टी  ?
रंग  पंचमी  की  .  आज  तो  रंग  पंचमी  है  ना . कोई  आया  नहीं . 
घोषित तो नहीं है .दबंग लोग जब  चाहे मना  सकते  है .
सच   कह रहे हो बड़े बाबू  हम और आप छोटा  होने का दर्द पी रहे है .
दर्द कैसा हम तो ड्यूटी   पर है .
बाकि लोग  अफसर है इसीलिए  मौज कर रहे है. फायदे  का मौका  आये तो लूट लो कर्मचारी को भनक ना लगे . ड्यूटी  बस  कर्मचारी का फ़र्ज़ है  अफसर   का नहीं  ? बूढा  समाज  हो  चाहे आधुनिक दफ्तर छोटा होने का दर्द तो पीना  पड़ता है .
देश का दुर्भाग्य  और हम  छोटे लोगो के जीवन की सच्चाई  तो यही  है कैसे नक्कार  दू  ?     नन्द  लाल  भारती  24.०३.२०११


Saturday, March 19, 2011

HOLI MUBARAK

होली मुबारक. 
होली मुबारक हो अकेला बाबू.  खुशलालजी पीछे  क्यों खड़े हो रंग,अबीर ,गुलाल से रंगों  अकेलाबबू को सारे गम रंग जाए .
अकेलाबबू-लीजिये मुंह मीठा कीजिये . बहुत हो गया रंग गुलाल .
खुशलालजी  - हां प्यास लगी है .
प्रेमबाबू -पानी का चलो भांग पिलाता हूँ.  
खुशलाल-मानता जी नवम्बर में गुजारी थी ,पहली होली पर रंग डालने आये हो भांग पिला रहे हो .
प्रेमबाबू- यहाँ नहीं हमारे घर तो पिओगे .
खुशलाल-बाद में देखि जायेगी. अकेलाबबू आपके दफ्तर के लोग आकर गए क्या ?
अकेलाबबू- आये नही तो जायेगे क्या ?
खुशलालजी-क्या ? पहली होली  पर  नहीं आये. मांताजी की मौत के बाद भी तो नहीं आये थे .रंग डालने भी नहीं आये .
प्रेमबाबू-समझा,जातिवंश के भेद को ख़त्म करना होगा .
खुशलाल- मलावी में बोले-कसा आदमी ओन है  जो दुखिया के सा नी दे ,असो नी कारणों चाइये. सच नेथु जानवर लोग हे . अकेलाबबू होली बहुत-बहुत मुबारक हो ....नन्दलाल भारती ..

Friday, March 18, 2011

andhadhundh kamaee

अंधाधुंध कमाई ....
क्या मोहन तनिक आँख ऊपर उठाकर देख लेता. कौन से काम में व्यस्त हो. अन्दर तो हंसी के बम फूट रहे है .
काम करने के लिए तो हम जैसे छोटे लोग होते है साहेब .
सुविधा का उपभो और अदने कर्मचारी को आंसू देने दे लिए दबंग लोग.
मतलब सुविधा भरपूर और काम कमजोर की छाती पर.
हां साहेब .........
मतलब दहशत से डबल कमाई और परिश्रम से दूरी  .
हां साहेब स्वार्थ की भांग का खुमार है . अभी  तो कर्तव्य भूल रहे है जिम्मेदार लोग. 
हां मोहन गरीब को गरीब बनाए रखने का शानायंत्र यही है . पद की चाभी क्या हाथ लग गयी अंधाधुंध कमाई के रिकार्ड टूट रहे है .दगाबाजी के खिलाफ जंग होना चाहिए .
हां साहेब हो जाती तो देश के माथे से भ्रष्टाचार का दाग धूल जाता .....नन्द लाल भारती १६.०३.2011

Monday, March 14, 2011

vikaas

विकास ..
क्यों चुपचाप बैठे हो . कुछ तुम भी तो बोलो .
मेरे मानेगा कौन ?
अभिव्यक्ति की आज़ादी है . विचार तो रखो ...
मेरे विचार से सत्ताधीशो को विदेशी बैंको में खाता नहीं खोलना चाहिए . जो खाते खुले है उन्हें राजसात कर लेना चाहिए . नए खातो पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए . उलंघन करना देश द्रोह माना जाना चाहिए . विशेष परिस्थितयो में छूट हो .
लाभ क्या होगा ?
भर्ष्टाचार पर प्रतिबन्धि , देश ka vikaas ....
विचार तो अच्छा है पर सत्ताधीश लागू होने दे  तब ना .................नन्दलाल भारती -- १४.०३.2011


vichar ...

विचार ....
मुट्ठी में क्या है  नंदा बाबू ?
विचार .....
कैसा विचार ?
लाभ का हिस्सा .
कैसा हिस्सा और किसको ?
सरकारी उपक्रमों द्वारा कमाए गए लाभ पर मतदाताओं को हिस्सा .
विचार तो अच्छा है .सत्ताधीश माने तब ना  .
मानना चाहिए इससे  मतदाताओं   की आर्थिक स्थिति  सुधरेगी और लोकत्रंत्र कुसुमित होगा .
मुट्ठी तो खुल गयी ...
बधाई हो नए विचार के लिए नंदा बाबू. 
विचार पर सहमति  के लिए धन्यवाद narayan बाबू ....  नन्द लाल bharati    14.03.2011
 
 

Wednesday, March 9, 2011

iljaam

इल्जाम .
दो सौ  रुपया दो राम ........
क्यों .........?
सामान बुक करवाना है .
पहले जो रुपये लिए उसके बिल .
बाद में दूंगा .
रूपया तीन महिना पहले लिए और बिल अभी बाद में दोगे .
कई बिल इ चूका हूँ.....
बिल बाद में रुपये पहले लिए हो.बकाया की बात कर राहू हूँ .
कई उलटे-सीधे बिल दे चुका हूँ.
रूपया वापस नहीं करना है तो इल्जाम ?
इल्जाम ही सही ....
चोर की दाढ़ी में तिनका . तुम्हारे चर्चे तो पंचर की दुकान, पेट्रोल पम्प, ऑटो पार्ट्स की दुकान सब जगह होते रहे है .तुम ईमानदार पर इल्जाम लगा रहे हो जगमोहन तबाक से बोला. 
जगमोहन की बात सुनते ही बिपिन बेरहम लजाकर चला गया ....नन्द लाल भारती ...०८.०३.२०११


Tuesday, March 8, 2011

Tulana

तुलना ..
क्यों कहा भेज दिया चपरासी को ?
अपने घर के काम से नहीं भेजा हूँ. दफ्तर के काम से गया है ,दफ्तर का काम निपटाकर सोहन अस्पताल में भर्ती अपने पिता को देखकर आएगा .घंटा भर भी तो नहीं हुआ गए..
चपरासी को अपना ही काम करना है तो उसको रखने की क्या जरुरत ?
क्यों हृदयहीन हो रहे हो बिपिन ?
तुमको लग रहा हूँ  मै हृदयहीन हो रहा हूँ. क्या गलत है पानी कौन पिलाएगा ?
सभ्यता से बात करना सीखो बिपिन सड़क पर नहीं दफ्तर में हो. सोहन दैनिक वेतन भोगी है, इसके बाद भी तुमसे कई गुना अधिक काम करता है . तुम क्या  करते हो चार घंटे के लिए दफ्तर आते हो. आते ही लोटपोट करने लगते हो . पानी की बोतले हर टेबल पर रख कर गया है पी  लो प्यास लगी है तो ?
क्या------------- ? खुद पानी लेकर पीना है तो चपासी की क्या जरुरत ?
गाडी बंद हुए सालो बीत गये है फिर तुम ड्राइवर की क्या जरुरत. ?  चालीस हज़ार रुपये हर महीने ले जा रहे हो वह भी बिना काम के. बेचारा सोहन दफ्तर के अन्दर-बाहर के काम आवक-जावक सहित  दूसरे  भी काम कर लेता है . अब दैनिक वेतन भोगी चपरासी से क्या काम लेना चाहते हो ? अपने दिल से पूछो तुम क्या कर रहे हो ?
बिपिन - मैं परमानेंट सरकारी दमाद वह दैनिक वेतन भोगी चपरासी हमारी उसकी क्या तुलना ............? नन्दलाल भारती ०२.०३.२०११

Thursday, March 3, 2011

naye vesh ka bhikhari

नये वेष का भीखारी ..
कहा घुसा जा रहा है . रोक बाईक कहते हुए ट्रेफिक हवलदार ने डंडा पहिये में डाल दिया .
क्या कर रहे हो इंस्पेक्टर साहेब बाईक रोकते हुए अमर बोला .
दिखा गाडी का कागज़ .
देख लीजिये ....
रख ले....
अच्छा लाईसेंस निकाल .
लाईसेंस  नहीं है .
२५०-०० रुपया निकाल चालान बनेगा .
क्यों...................
बिना लाईसेंस के बाईक चला रहा है और पूछ रहा है क्यों............
इन्सेप्क्टर साहेब यूरो बाईक है  लाईसेंस की जरुरत नहीं है .
ट्रेफिक इन्सपेक्टर को सिखाता है .
निकाल २५०-०० रुपया ..
नहीं है .....
सौ निकाल .........
नहीं है ...
पच्चास निकाल..
नहीं है.........
क्या है तेरे पास....
यूरो बाईक....
गुटका के तो पैसे दे दे...............
अमर चल हट नये वेष का भीखारी है क्या   .........नन्द लाल भारती ०३.०३.2011

Tuesday, March 1, 2011

Dushman

Dushman ...
दुश्मन ... 
करीम-कादर आपस में  वार्तारत थे. करीम बोला-देखो वी खुमार का रघुबाबू को गली दे दिए .अफसर क्या हो गया की कंस जैसा व्यहार करने लगा .रघु तो वैसे ही नेक इंसान है, कर्म को पूजा समझते है .
कादर-वी खुमार का नैतिक,मानसिक,बौध्दिक पतन हो गया है. पागल होते जा रहा है . विभागीय काम के साथ न्याय नहीं करता है. समय के पाबन्द बेचारे रघुबाबू को बेवकूफ कामचोर, छोटेलोग और भी बुरे-बुरे शब्द बक रहा था . कैसा आदमी है .. नेम कर्मचारी को अपमानित करता है .
कादर-ऐसे लोग नेक कर्मचारियों के ही नहीं देश,संस्था और समाज के भी दुश्मन होते है .
रघुबाबू-क्या गुफ्तगू  हो  रही है  .
कादर भाई-कुछ नहीं साहेब आप जैसे कदावर लोग चलते है,  तो वी खुमार जैसे अफसर जलते है .
रघु बाबू-क्या ............................नन्दलाल भारती ०१.०३.२०११

aadesh

आदेश ...
कालबेल की घनघनाहट सुनकर चपरासी बॉस के कक्ष में प्रवेश किया .बॉस ऐनक ऊपर-नीचे करते हुए बोले क्यों विवके आ गए . 
रहीस- नहीं सर वे   ग्यारह बजे के बाद आते है .
विवेक दफ्तर में घुसते ही रहीस को चाय लाने का आदेश दिए .
रहीस- सर जी  चाय से पहले साहेब की सुन लो .
विवेक-सर आपने बुलाया है .
बॉस-तुमको अपनी औकात मालूम है. कैसे नौकरी लगी है . तुम्हारी माँ को तो मालूम होगा. कितने सफेदपोश,सफेद्कालर की चौखटों पर माथा पटकी अब जाकर नौकरी लगी, और तुम राम जी नेक,ईमानदार,वफादार कर्मचारी को औकात दिखा रहे हो . बेवक़ूफ़ कह रहे हो. ये अफासर्गिरी है या दादागिरी...
विवेक-सारी सर................
बॉस-माफी  राम से मांगो ..
राम- सर कब तक इस दादा किस्म के अफसर को माफी दू .. पहले भी कई बार दे चुका हूँ..
बॉस-एक बार और ....
राम-सर आपका आदेश ........................नन्दलाल भारती -- ०१-०३-२०११