तारगेट..
नंदा आजकल तुम तारगेट बने हो .
कैसा तारगेट ना तो पास दौलत का ढेर और ना ही रुतबेदार ओहदा ?
कल की दुर्घटना भूल गए .आज की तो याद होगी ?
कल की कौन और आज की कैसी ?
कल की रेगुलर कर्मचारी ना होता तो झगडा करता . आज की बात प्रेमचंद जैसी कपडे अंग्रेजो जैसा .
खून चूसने वालो को हाशिये के आदमी की तनिक तरक्की कैसे बर्दाश्त होगी . वह तो कमजोर आदमी की आँख में आंसू देखकर खुश होता है .
हां खून चूसने वाला रौदने की फ़िराक में रहता है तानाशाह की तरह .
ठीक कह रहे हो हंस बाबू तभी हाशिये का आदमी तारगेट बना रहता है तानाशाहों का .यही कारण है जिसकी वजह से कमजोर / हाशिये का आदमी तरक्की से दूर है .. नन्दलाल भारती.. २८.०३.२०११
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