होली मुबारक.
होली मुबारक हो अकेला बाबू. खुशलालजी पीछे क्यों खड़े हो रंग,अबीर ,गुलाल से रंगों अकेलाबबू को सारे गम रंग जाए .
अकेलाबबू-लीजिये मुंह मीठा कीजिये . बहुत हो गया रंग गुलाल .
खुशलालजी - हां प्यास लगी है .
प्रेमबाबू -पानी का चलो भांग पिलाता हूँ.
खुशलाल-मानता जी नवम्बर में गुजारी थी ,पहली होली पर रंग डालने आये हो भांग पिला रहे हो .
प्रेमबाबू- यहाँ नहीं हमारे घर तो पिओगे .
खुशलाल-बाद में देखि जायेगी. अकेलाबबू आपके दफ्तर के लोग आकर गए क्या ?
अकेलाबबू- आये नही तो जायेगे क्या ?
खुशलालजी-क्या ? पहली होली पर नहीं आये. मांताजी की मौत के बाद भी तो नहीं आये थे .रंग डालने भी नहीं आये .
प्रेमबाबू-समझा,जातिवंश के भेद को ख़त्म करना होगा .
खुशलाल- मलावी में बोले-कसा आदमी ओन है जो दुखिया के सा नी दे ,असो नी कारणों चाइये. सच नेथु जानवर लोग हे . अकेलाबबू होली बहुत-बहुत मुबारक हो ....नन्दलाल भारती ..
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