दुर्भाग्य/लघुकथा
यार कैसे अफसर हो मनोहर ?
आपके कहने का मतलब क्या ? मैं योग्य नहीं। अरे भाई कुशासन की वजह से दुर्गति हो रही है वरना उच्च श्रेणी का अफसर होता।
हां तुम्हारी जाति तुम्हारा दुर्भाग्य बन गयी है।
जी प्रबंधन का दिया जख्म तो सदा हरा रहेगा ,पर याद कर दुखी नहीं होना चाहता। जो घाव मिले उसी के दर्द से बेहाल हूँ। अब कोई नया घाव ना मिले।
तुम्हे पता नहीं !!!!!!!
क्या ..........?
तुम्हारी आफिस से अफसर शोध पर जा रहे है।
कौन सा शोध कार्य ?
ग्रामीणो के विकास के लिए विभाग शोध कार्य करवा रहा है।
क्या ग्रामीणो के विकास के लिए शोध ?
हां वह भी ऐसे अफसरों को भेजा जा रहा है जिनके पास शोध से सम्बंधित कोई शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है। तुम्हारे पास सारी योग्यताएं है।
शैक्षणिक योग्यता तो है परन्तु !!!!!!!!!!!!!!!!!
परन्तु क्या ………………… ?
पहुँच के साथ उच्च वर्णिक योग्यता तो नहीं है ना !!!!!!!!!!!!!!यही मेरा दुर्भाग्य है
तुम्हारा नहीं विभाग का दुर्भाग्य है मनोहर !!!!!!!!!!!!!
डॉ नन्द लाल भारती 04.09.2014
दर्द /लघुकथा
सुनो जी आपके तेवर क्यों बदले हुए लग रहे है ?
भागवान भला मेरे तेवर क्यों बदलने लगे ?
कुछ बात तो है ,कही ना कहीं खट्टा -मीठा एहसास हुआ तो है।कही गए थे क्या ?
हां मित्रता की ओर कदम बढ़ा रहे एक शख्स के बुलावे पर उन्ही से मिलने।
अनुभव अच्छा नहीं रहा।
स्वाभिमान और अभिमान दोनो के साक्षात् दर्शन हो गए।
वो कैसे ?
जब मै एकडो में बने बगले के मेनगेट से बरामदे में हाजिर हुआ तो उनकी धर्मपत्नी ऐसे दरवाजे पर खड़ी हो गयी जैसे प्रवेश वर्जित हो। वो अंदर से सवाल पर सवाल दागे जा रही थी।
मसलन ..........
क्यों कैसे आये ,साहेब ने मिलने का समय दिया है क्या।
फिर क्या हुआ।
मैडम जबाब से संतुष्ट होकर दरवाजा खोली।
पानी चाय का भी नहीं पूछा मैडम ने।
बैठने तक का बोलने में सोच-विचार करना पड़ा था मैडम को।
छाती पर पत्थर रखकर बैठने के साथ बोली साहब नहा रहे हे। अंदर चली गयी फिर लौटी नहीं।
मैडम से मिलकर कैसा लगा ?
बुरा बहुत बुरा भगवान परन्तु मित्रता की ओर कदम बढ़ा रहे बलिहारीजी से मिलकर स्व-मान बढ़ गया। स्वाभिमानी, परहित के लिए जन जागरण करने वाले नेक इंसान है,अपने हाथो से पानी लाये थे मेरे लिए।
काश मिसेज बलिहारी अतिथि देवो भवः के मर्म को समझती तो मैडम का अभिमान दर्द ना देता।
डॉ नन्द लाल भारती 12 .08 .2014
शब्द बाण /लघुकथा
साहित्यिक संगोष्ठी अपने यौवन से ढलान की और तीव्रता से बढ़ रही थी इसी बीच चेतमल बोले शब्दबुध्द जी मुझे भी कवितापाठ करना है।
शब्दबुध्द-सचिव से कहने का इशारा किये।
चेतमल-अचेतमल न देख रहे है न सुन सुन।
शब्दबुध्द सचिव महोदय से बोले -चेतमलजी कवितापाठ करना चाहते है।
शब्दबुध्द का अनुरोध ना जाने क्यों अचेतमल को गुस्ताखी लग गया।वे अपनी जबान रूपी म्यान से ऐसे शब्द बाण का प्रहार कर बैठे जैसे कोई राजा गुस्ताख़ को दंड देने के लिए तलवार का प्रहार कर दिया हो।रिटायर्ड पी डब्लू डी के इंजीनियर अचेतमल का घमंड अभी सातवे आसमान पर था वे शब्दबुध्द बोले सचिव नहीं मिस्टर मेरा नाम भी है। चेतमल मुझसे डायरेक्ट बात कर सकते है। आपको कहने की जरुरत नहीं।अभिमानी रिटायर्ड पी डब्लू डी के इंजीनियर अचेतमल शायद भूल गए थे कि वे अब पी डब्लू डी के इंजीनियर नहीं साहित्यिक संस्था के सचिव की हैसियत से मंचासीन है।उनसे सौ गुना बेहत्तर रचनाकार और सदस्य महफ़िल की शोभा बढ़ा रहे है। जबकि शब्दबुध्द दशक भर सचिव के पद को गौरान्वित कर चुके थे।
अचेतमल के असाहित्यिक व्यवहार को देखकर कानाफूसी होने लगी थी देखो सचिव को सचिव महोदय से सम्बोधित करना गुस्ताखी हो गया। संस्था ने सचिव क्या बना दिया बन्दर के हाथ छुरी थमा दिया।ये क्या साहित्य का भला करेंगे ?
डॉ नन्द लाल भारती 09 .08 .2014
संस्कार /लघुकथा
गोधूलि बेला में एकदम उठे और कहाँ चले गए थे ?
घूमने चला गया था।
कहाँ ?
एम आर टेन।
घूमने गए थे चिंता लेकर आये हो ।
चिंता की बात ही है। दो बूढ़ी औरते चर्चारत थी,एक बोली बहन बेटा कह रहा की वह अब अपने हिसाब से रहेगा ।
दूसरी बोली बहन तुम्हारे ऊपर मुसीबत मंडरा रही है।
पहली बोली हां बहन। वृध्दा आश्रम की ओर प्रस्थान करना होगा ।यही चिंता खाए जा रही है ।
आपको कैसी चिंता ।
यदि हमारे साथ ऐसा हो गया तो ?
हमारे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता ।
क्यों ?
क्योंकि आपने अपने बच्चो को शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार दिए है। संस्कारवान बच्चे के लिए माँ-बाप धरती के भगवान होते है ।
सच बच्चो को भले ही विरासत में धन न मिले पर शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार तो मिलनी ही चाहिए यही संस्कार वृध्दा आश्रम की राह रोक सकता है।
डॉ नन्द लाल भारती 30 .07.2014
ब्लॉग्स पर मेरी अनेक लघुकथाएँ उपलब्ध है।
पर्दाफाश /लघुकथा
देहात की प्रसूता की जान को बचाने के लिए ए पॉजिटिव खून की तुरंत जरुरत है की उड़ती खबर सुनकर अमन प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल, जो शहर से २५ किमी दूर था,जिसके मालिक चिकित्सा शिक्षा के फर्जीवाड़ा के केस में कई महीनो से जेल में है की और भागा। अमन को प्रसूता के सगे सम्बन्धी मुख्य द्वार पर मिल गए,जबकि अमन से किसी प्रकार की कोई जान -पहचान ना थी । वे लोग अमन को पलको पर बिठा कर अस्पताल के लैब में ले गए ।अमन को देखते ही डॉ बोला जाओ कैंटीन से कुछ खा कर आओ ।
अमन - डॉ साहेब मैं घर से खाकर आ रहा हूँ आप तो तुरंत खून लेकर प्रसूता की जान बचाईये ।
डॉ -वह हो जायेगा पर कैंटीन से कुछ खा कर आओ।आखिरकार अमन को जबरदस्ती अस्पताल की कैंटीन में भेज दिया गया ,जहां उससे फूल डिनर का भुगतान भी लिया गया ।डिनर का बिल चुकाने के बाद अमन का खून लिया गया । ब्लड डोनेट कर देने दे बाद अमन को बीस रुपये का कूपन दिया गया और कहा गया जाओ कैंटीन में कुछ पी लो ।
अमन बोला -डॉ यही कूपन पहले दे देते । डिनर का रूपया तो मेरा बच जाता । कैसा रॉकेट चल रहा है डॉ ………?
प्रसूता का पति गिड़गिड़ाते हए बोला मेरी पत्नी और बच्चे को बचा लो डॉ साहेब ।
डॉ-कैश काउंटर से रसीद लेकर आओ ।प्रसूता का पति रसीद दिखाते हुए बोला रसीद है मेरे पास साहेब।
डॉ -सचमुच गावड़े हो। अरे खून के कीमत की रसीद।
प्रसूता का पति का बाप बोला डॉ साहेब ये दान का खून है इसकी कीमत।
डॉ-यहां कुछ मुफ्त का नहीं है।
आखिरकार प्रसूता के सगे सम्बन्धियों ने मिलकर अपने अपने पॉकेट की निङ्गा झोरी कर रूपये जमा करवाये तब जाकर खून चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी हुई।प्रसूता के बाप अमन के सिर पर हाथ रखा कर बोले बेटा युग-युग जीओ]खूब तरक्की करो ,परमार्थ का काम तो कर ही रहे हो। मेरी बेटी और उसके बच्चे का जान बचाने के लिए हमारा परिवार तुम्हारा कर्जदार रहेगा बेटा ।
अमन-बाबा मुझे बहुत दुःख है। प्रसूता के बाप कैसा दुःख बेटा ?
अमन -डोनेशन के खून की मुंह माँगी कीमत गरीब से वसूली जा रही है इसका दुःख है बाबा। इस रॉकेट का पर्दाफाश कैसे और कब होगा ?
डॉ नन्द लाल भारती 13 .07.2014
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