ममता
माँ से मुलाकात हुई
नहीं ... बहुत कोशिश के बाद भी .दो दिन की यात्रा जो थी .
याद है ?
क्या ?
जब पहली बार रोजगार की तलाश में घर छोड़ा तब माँ कई हफ्ते रोई थी . मै शहर आकर मन ही मन कसम खा लिया की पक्की नौकरी पा जाने के बाद घर जाऊँगा . नहीं मिली . चार साल के बाद गांव गया . माँ मुझे पकड़ कर इतना रोई की मेरी अंतरात्मा नहा उठी. वही माँ आँखों में सपने लिए आँखे मूंद ली हमेशा के लिए . मै अभागा माँ के आंसू का भार कम नहीं कर पाया.
माँ का क़र्ज़ कोई नहीं उतार पाया है आज तक ......... नन्दलाल भारती १८.०७.2009
No comments:
Post a Comment