Tuesday, August 31, 2010

KHALI PARS

खाली पर्स ..
मार्च का दूसरा दिन था पगार मिलाने की उम्मीद थी.गुणानंद सोच रखा था की पगार मिलते ही घरवाली को अस्पताल ले जाएगा जो कई दिनों से दर्द से कराह रही है. कैशियर सुखेश साहब दफ्तर बंद होने के कुछ पहले पगार बाटना शुरू किये. पगार मिलने की उम्मीद में कई घंटो तक गुणानंद काम में लगा रहा. सुखेश साहब खिझ निकालते  हुए गुणानंद को पगार आज न देने की जिद कर बैठे. गरीब गुणानंद को देखते ही आदत मुताविक  सुखेश साहब टालमटोल करने लगे .कमजोर को तंग करने में उन्हें खूब मज़ा आता था. आखिरकार गुणानंद को पगार नहीं दिए, गुणानंद उदास घर की और चल पड़े . कुछ ही देर में आकाश में अवारा बदल छा गए और बरस पड़े. गुणानंद भींगा घर पहुंचा पिचका खाली पर्स निकालकर खटिया पर रखा जिसमे मात्र पच्चास पैसे थे . खाली पर्स रखकर भींगे कपडे उतारने लगा. इतने में गुणानंद की धर्मपत्नी रेखा आयी और बोली आज दर्द कम है अस्पताल बाद में चलेगे वह  दर्द में बोले जा रही थी. गुणानंद कभी खाली पर्स तो कभी  पत्नी को देख रहा था. पत्नी के दर्द के एहसास से उखड़े पाँव  गुणानंद कराहते हुए बोला वाह  रे अमानुष सुखेश साहब ..... नन्दलाल भारती  ३०.०८.२०१०

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