Thursday, August 19, 2010

JHALAK

झलक ..
कोई दरवाजे पर खड़ा है ?
अन्दर बुलाओ .
बुला रहे है ,जाइए .
आप है , अन्दर आइये , बाहर क्यों खड़े है ?
जल्दी में हूँ.
ऐसी क्या जल्दी है . रिटायर्मेंट के बाद भी जल्दी . बैठिये .
वक्त  नहीं है. मुझे तीन सौ रूपया दे सकते है ? १० तारीख को बेटा की तनख्वाह मिलेगी दे जाउगा .
तीन सौ ...
हां बस तीन सौ अधिक नहीं .
लीजिये ...
धन्यवाद.. चलता हूँ ...
आगंतुक के पग बढाते ही झलक पड़ा तंगी का दर्द.. नन्दलाल भारती.. १९.०८.२०१०
 

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