Friday, August 13, 2010

NIGAAH

निगाह ..
कौन थी वो .....
सामने मेनगेट के बिच कड़ी मोती औरत की बहू .
बहु तो नहीं नौकरानी लगती है .
वैसे ही रखते है .
विधाता ने कैसा घर बेचारी की तकदीर में लिख दिया है .
पढ़ी लिखी नौकरानी होकर रह गयी है .
क्या मांग रही थी ?
पानी---
बोरिंग चालू हो गयी  पहली बरसात से ही .
नहीं..
कहा से पानी दोगी ?
ख़रीदा हुआ टैंकर का पानी .
तुम कहा से लाओगी ?
हम तो हर हफ्ते खरीदते है .
तो दान क्यों..?
पत्थर  पसिजाने के लिए ..
क्या...?
हां ..पत्थर दिल है पूरा परिअर पर बहू को छोड़कर .
वो कैसे...?
पूरे साल बोरिंग चली है , एक गिलास पानी किसी को नहीं दिए है . पानी का अकाल पड़ा हुआ है पुरे शहर में . रोज़ कहते थे बोरिंग पानी नहीं दे रही है . कल चालू नहीं हुई तो आज बहो को पानी मागने के लिए भेज दी .जानती है हम मन नहीं करेगे. पानी के लिए दर -दर भटकने के बाद भी  .
कैसा गिध्द परिवार र है जिनकी निगाहें बस मतलब साधने  लगी रहती है ...नन्दलाल भारती ..१३.०८.२०१०




 

No comments:

Post a Comment